खुसूर-फुसूर
सफाई की तरह यातायात पर भी काम हो
कुछ साल पहले तक शहर की सडकों पर लोग बेधडक धूकते,कचरा फेकते और गंदगी करते नजर आते थे, पिछले सालों के स्वच्छता अभियानों और जन्म से लेकर मृत्यु तक साथ निभाने वाली संस्था की कसावट से अब ऐसे नजारे नहीं दिखते हैं। हाल यह हैं कि बडे बच्चे सभी इसे लेकर सजग रहते हैं। स्वच्छता को लेकर तो अच्छी खासी जागरूकता अब शहर में देखने को मिलती है लेकिन यातायात की समझ अब भी शहर में काफी कमजोर है। कोई भी कहीं भी पलट जाता है। लाल बत्ती में ही मुख्य चौराहों पर गुत्थम गुत्था की स्थिति बनी रहती है। न नियमों का भान रखा जाता है न ही कानूनों का। बस वाहन चलाना आया और निकल पडे सडक पर। अब इसमें दुसरे को नुकसान हो तो होता रहे । ज्यादा से ज्यादा क्या होगा। पुलिस पकडेगी,चालान बनेगा। दुर्घटना के मामले लंबा खिंचेगा, समझौता कर लेंगे। ऐसी कई भ्रांतियों के साथ वाहन चालन बगैर नियमों के किया जाता है। इससे पूरा यातायात बाधित तो होता ही है कई बार इन कारणों से दुर्घटनाओं के हालात बराबर शहर में बन रहे हैं। खुसूर-फुसूर है कि परिवहन विभाग के नियमों के तहत अधिकांश वाहन चालक अपने वाहन का चालन करना ही नहीं जानते हैं। यातायात में वाहन चालन के मामले को भी अब सामाजिक जिम्मेदारी के तहत जोडते हुए इस पर काम होना चाहिए। सामाजिक संगठनों को इसके लिए बराबर सडक पर उतरकर सफाई अभियान की तरह ही अपना योगदान देना चाहिए। धीरे-धीरे ही सही अगर यह अभियान सालभर सतत रूप से चला तो धार्मिक शहर में नियमों के तहत यातायात और वाहन चालन की समझ को विकसित करते हुए धार्मिक शहर की व्यवस्थाओं को बेहतर किया जा सकेगा। इसमें सीधे तौर पर यातायात विभाग के साथ ही वरिष्ठ अधिकारियों को पहल करने मैदान में आना होगा और संस्थाओं के साथ इस सुधार प्रक्रिया को अपनाकर उज्जैन की इस व्यवस्था को पटरी पर लाना चाहिए।
